Genome Rice: भारत सरकार ने लॉन्च की नए किस्म का चावल की मंजूरी, कम समय में किसानों की तगड़ी कमाई

Genome Rice: भारत सरकार ने लॉन्च की नए किस्म का चावल की मंजूरी, कम समय में किसानों की तगड़ी कमाई

Genome Rice: भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) ने जीनोम एडिटेड चावल की दो नई किस्में बनाई हैं। इनकी खासियत कम लागत, कम पानी और कम समय में अधिक उत्पादन है। इससे 30 फीसदी तक धान का उत्पादन बढ़ जाएगा और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों को भी कम करने में मदद मिलेगी। आइये जानते हैं क्या इसकी खासियत

लंबे समय के बाद भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) ने जीनोम एडिटेड चावल की दो नई किस्में जारी कर दी है। ICAR का दावा है कि इन नई किस्मों के धान की उपज में 20-30 फीसदी तक बढ़ोतरी होगी। खेती के लिए यह धान गेम चेंजर साबित हो सकती है। इस नए किस्म के धान से निकला चावल कैसा रहेगा। इस पर पूरे देश की निगाहें टिकी हुई हैं। बताया जा रहा है कि इससे जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों को भी कम करने में मदद मिलेगी। 4 मई को यह नए किस्म का चावल जारी किया गया है। इसमें दो चावल की किस्मों सांबा महसूरी और MTU1010 को बेहतर बनाने के लिए जीनोम एडिटिंग (Genome Editing – GE) का इस्तेमाल किया गया है। यह प्रोजेक्ट साल 2008 में शुरू किया गया था।

इन एडवांस किस्मों से 19 फीसदी तक उपज में सुधार हो सकता है। इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह फसल बेहद कम समय में तैयार हो जाएगी। इसमें पानी की भी कम जरूरत पड़ती है। साथ ही खाद की जरूरत बेहद कम है। इसके अलावा ये कम मीथेन उत्स्रजित करेगी। जलवायु संकट के इस युग किसानों के लिए यह किस्म किसी संजीवनी से कम नहीं है। इसे दक्षिण मध्य और पूर्वी भारत में उगाया जा सकता है।

जानिए Genome Rice कैसे तैयार की गई

GE टेक्नोलॉजी में CRISPR-Cas का इस्तेमाल किया जाता है। यह एक तरह का प्रोटीन है। जीनोम के डीएनए सीक्वेंस को एडिट करने के लिए मॉलिक्युलर सीजर्स के रूप में काम करता है। जीनोम को एडिट करने का मतलब है किसी के करैक्टर को बदल देना। CRISPR-Cas का इस्तेमाल करके वैज्ञानिक पौधे पर अनाज की संख्या बढ़ाने जैसे गुणों को डिजाइन किया है। बता दें कि GE फसलें जेनेटिकली मॉडिफाइड (Genetically Modified – GM) फसलों से अलग हैं। GM टेक्नोलॉजी में, पौधे के जीन में एक विदेशी DNA डाला जाता है।

क्या इस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल दूसरी फसलों में कर सकते हैं?

कहा जा रहा है कि ऐसी टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल दूसरी फसलों के लिए भी किया जा सकता है। इसका इस्तेमाल दालों और तिलहनों पर कर सकते हैं। इससे भारत की निर्भरता दूसरे देशों पर कम होगी। ICAR इन फसलों जीई संवर्धन पर काम कर रहा है, जिसके लिए सरकार ने 500 करोड़ रुपये दिए हैं। मौजूदा समय में भारत दालों और तिलहनों के आयात पर हर साल 20 अरब डॉलर से अधिक खर्च करता है। इसके उलट यह चावल का दुनिया का सबसे बड़ा निर्यातक है।

क्या GE फसलें सेहत के लिए सुरक्षित हैं?

वैज्ञानिकों का कहना है कि GE फसलें मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए केवल मामूली जोखिम पैदा करती हैं। ये सामान्य रूप से उगाई जाने वाली फसलों जितनी ही अच्छी हैं। जिनमें पौधों का संकरण (Crossing) शामिल होता है। GE से नतीजे जल्दी मिलते हैं। वहीं GM-Free भारत गठबंधन ने सरकार की तरफ से GE टेक्नोलॉजी को कंट्रोल फ्री करने के फैसले की आलोचना की है। इसके साथ ही आरोप लगाया है कि नई किस्मों को बिना किसी सुरक्षा मूल्यांकन के जारी कर दिया गया है। दूसरी ओर, GM को कड़ाई से रेग्युलेट किया जाता है।

Leave a Comment